भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक ,भगत सिंह । भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था और इनका मृत्यु 23 वर्ष की आयु में हुईं थी। भगत सिंह ,शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर के साथ ,एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी , जॉन पी सॉन्डर्स को मारने की साजिश के लिए मौत की सजा सुनाई गई थीं और जिन्होंने स्वतंत्रता आंनदोलन के नेता लाला साजपत राय पर क्रुर पुलिस कार्रवाई का आदेश दिया था। उन्हें अक्सर शहीद भगत सिंह के रुप में जाना जाता था। 28 सितंबर 2019 को भगत सिंह की 112 वीं जयंती होगी।
भगत सिंह के जन्मदिन के मौके पर लोगों को
सरफरोजी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजु -ए- कातिल में है।।
उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है?
हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है?
दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें।
सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें।।
आप को बता दें कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना भी नहीं चाहता. आज एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं. अब मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता. मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है. क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है. इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा मैं हरगिज नहीं हो सकता।
आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं हैं. यदि मैं फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और क्रांति का प्रतीक चिह्न मद्धम पड़ जाएगा. हो सकता है मिट ही जाए. लेकिन दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते मेरे फांसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी.
हां, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थीं, उनका 1000वां भाग भी पूरा नहीं कर सका अगर स्वतंत्र, जिंदा रह सकता तब शायद उन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता. इसके अलावा मेरे मन में कभी कोई लालच फांसी से बचे रहने का नहीं आया. मुझसे अधिक भाग्यशाली कौन होगा, आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है. मुझे अब पूरी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है, कामना है कि ये और जल्दी आ जाए।
इस तरह तीनों ने लगा लिया फांसी को गले
भगत सिंह के साथ उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव ने भी हंसते- हंसते फांसी के फंदे को आगे बढ़कर चूम लिया था. जिस दिन उन्हें फांसी दी गई थी उस दिन वो मुस्कुरा रहे थे. मौत से पहले तीनों देशभक्तों ने गले लगकर आजादी का सपना देखा था. ये वो दिन था जब लाहौर जेल में बंद सभी कैदियों की आंखें नम हो गईं थीं. यहां तक कि जेल के कर्मचारी और अधिकारियों के भी फांसी देने में हाथ कांप रहे थे. फांसी से पहले तीनों को नहलाया गया. फिर इन्हें नए कपड़े पहनाकर जल्लाद के सामने लाया गया. यहां उनका वजन लिया गया. मजे की बात ये कि फांसी की सजा के ऐलान के बाद भगत सिंह का वजन बढ़ गया था। जब भगत सिंह को फांसी दी जाने वाली थी तब भगत सिंह ने अपनी शहादत से ठीक कुछ घंटे पहले ऐसा क्या लिखा जो इंकलाब की आवाज बन गया. यहां पेश है उस उर्दू खत का हिंदी मजमून।
23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई। फाँसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और जब उनसे उनकी आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए और कहा जाता है कि जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- "ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।" फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले - "ठीक है अब चलो।"
फाँसी पर जाते समय वे तीनों मस्ती से गा रहे थे ...
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे।
मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला॥
Posted by - Anand Pandey