बापू मोहनदास करमचंद गांधी. उनकी 150वीं जयंती पर आज पूरा राष्ट्र उन्हें याद कर रहा है. गांधीजी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था. उन्होंने आपना पूरा जीवन लोगों को अहिंसा का पाठ पढ़ाने बिता दिया . अंग्रेजों को भी उनके सामने झुकना पड़ा. देश आजाद हो चुका था. भारत के लोग खुश थे. देश में लोकतंत्र का परचम लहराने लगा था. लेकिन ये खुशी उस वक्त राष्ट्रीय शोक में बदल गई, जब 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली के बिड़ला भवन में गांधीजी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. हम आपको विस्तार से बता रहे हैं वो पूरा घटनाक्रम, जो भारत के इतिहास में एक दुखद अध्याय बन कर रह गया।
30 जनवरी, 1948 को दिल्ली में सूरज नहीं निकला था. कोहरे और जाड़े के कारण सड़कों पर दिल्ली वाले ज़्यादा नहीं निकले थे. मैं हर रोज की तरह आकाशवाणी भवन से अलबुकर्क रोड पर स्थित बिड़ला हाउस के लिए निकला था।
वक्त लगभग दिन के साढ़े तीन बजे रहा होगा । मैं महात्मा गांधी की प्रार्थना सभा की रिकॉर्डिंग के लिए जाता था. सभा शाम पांच से छह बजे तक चलती थी. इसमें सर्वधर्म प्रार्थना होती थी।
सभा के अंतिम क्षणों में गांधी सामयिक विषयों पर टिप्पणी करते थे. सभा में आने वाले लोग उनसे बीच-बीच में प्रश्न भी करते थे. बिड़ला हाउस में प्रार्थना सभा का सिलसिला सितम्बर,1947 से शुरू हुआ था। तभी अचानक उनके सामने नाथूराम विनायक गोडसे आ गया. गोडसे ने अपने सामने गांधी जी को देखकर हाथ जोड़ लिया और कहा- 'नमस्ते बापू!', तभी बापूजी के साथ चल रही मनु ने कहा- भैया, सामने से हट जाओ बापू को जाने दो, पहले से ही देर हो चुकी है । तभी अचानक गोडसे ने मनु को धक्का दे दिया और अपने हाथों में छुपा रखी छोटी बैरेटा पिस्टल गांधीजी के सामने तान दी, और देखते-ही-देखते गांधीजी के सीने पर एक के बाद एक तीन गोलियां दाग दीं. दो गोलियां बापू के शरीर से होती हुईं बाहर निकल गईं, जबकि एक गोली उनके शरीर में ही फंसकर रह गई, और गांधीजी वहीं पर गिर पड़े।
गांधी का पार्थिव शरीर
कुलदीप नैयर याद करते हैं, "जब मैं वहाँ पहुंचा तो वहाँ कोई सिक्योरिटी नहीं थी. बिरला हाउस का गेट हमेशा की तरह खुला हुआ था. उस समय मैंने जवाहरलाल नेहरू को देखा. सरदार पटेल को देखा. मौलाना आज़ाद कुर्सी पर बैठे हुए थे ग़मगीन. माउंटबेटन मेरे सामने ही आए. उन्होंने आते ही गाँधी के पार्थिव शरीर को सैल्यूट किया. माउंटबेटन को देखते ही एक व्यक्ति चिल्लाया- 'गाँधी को एक मुसलमान ने मारा है'. माउंटबेटन ने ग़ुस्से में जवाब दिया- 'यू फ़ूल, डोन्ट यू नो, इट वॉज़ ए हिंदू!' मैं पीछे चला गया और मैंने महसूस किया कि इतिहास यहीं पर फूट रहा है. मैंने ये भी महसूस किया कि आज हमारे सिर पर हाथ रखने वाला कोई नहीं है."
उस दिन बापू, आभा और मनु के कंधों पर हाथ रखकर प्रार्थना सभा में शामिल होने के लिए मंच की तरफ आगे बढ़ रहे थे, तभी अचानक उनके सामने नाथूराम विनायक गोडसे आ गया. गोडसे ने अपने सामने गांधी जी को देखकर हाथ जोड़ लिए.
तभी अचानक गोडसे ने मनु को धक्का दे दिया और अपने हाथों में छुपा रखी छोटी बैरेटा पिस्टल गांधीजी के सामने तान दी, और देखते-ही-देखते गांधीजी के सीने पर एक के बाद एक तीन गोलियां दाग दीं. दो गोलियां बापू के शरीर से होती हुईं बाहर निकल गईं, जबकि एक गोली उनके शरीर में ही फंसकर रह गई, और गांधीजी वहीं पर गिर पड़े.
खुद पुलिस-पुलिस चिल्लाया था गोडसे बापू पर चलाई थीं एक बाद एक 3 गोलियां
गिरफ्तारी के बाद नाथूराम गोडसे ने कहा, 'जब हमने एक के बाद एक तीन गोलियां गांधीजी पर चली दीं तो गांधीजी के आसपास खड़े लोग दूर भाग गए. मैंने सरेंडर के लिए दोनों हाथ भी ऊपर कर दिए, उसके बाद कोई हिम्मत करके मेरे पास नहीं आ रहा था, पुलिसवाले भी दूर से ही देख रहे थे. मैं खुद पुलिस-पुलिस चिल्लाया, करीब 5-6 मिनट के बाद एक व्यक्ति मेरे पास आया. उसके बाद मेरे सामने भीड़ जमा हो गई और लोग मुझे पीटने लगे.
नाथूराम गोडसे का कबूलनामा और दर्ज हुआ हत्या की FIR
गांधीजी की हत्या के बाद इस मुकदमे में नाथूराम गोडसे समेत 8 लोगों को आरोपी बनाया गया था. जिसमें से दिगम्बर बड़गे को सरकारी गवाह बनने के कारण बरी कर दिया गया. वहीं शंकर किस्तैया को उच्च न्यायालय से माफी मिल गई. जबकि वीर सावरकर के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलने की वजह से बरी कर दिया गया. बाकी बचे 5 अभियुक्तों में से गोपाल गोडसे, मदनलाल पाहवा और विष्णु रामकृष्ण करकरे को आजीवन कारावास हुआ था. जबकि नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को 15 नवंबर 1949 को फांसी पर लटका दिया गया।
Posted by - Anand Pandey